Monday, June 13, 2011

जहाँ पाया तुम ही तुम

जय मां

हर आहट से लगता है तुम हो
तन में तुम समाती हो माँ में भी तुम हो
आँख मेरी रोती है पलकों पे तुम हो
दर्द मेरे होता है बातों में तुम हो
जीवन ये तुम से है साँसों में तुम हो तुम हो तुम हो

बारिश जो होती है बादल में तुम हो
चाँद जो खिलता है रातों में तुम हो
सूरज की किरणों की तेज़ी में तुम हो
पूजा के दिए की लौ में भी तुम हो
धड़कन ये तुमसे है दिल में ही तुम हो तुम हो तुम हो

फूल जो खिलते हैं खुशबू में तुम हो
पंची जो गाते हैं गीतों में तुम हो
झीलों के पानी की ठंडक में तुम हो
वीणा के तारों के रागों में तुम हो
सोच यह तुमसे है ख्यालों में तुम हो तुम हो तुम हो

पायल के घुँघरू की चन चन में तुम हो
लहरों की तरंगों की उड़ानों में तुम हो
काव्य की इन पंक्तियों के अक्षर में तुम हो
भजनों की भाषा की श्रद्धा में तुम हो
बोलूँ मैं क्या मेरे अधरों पे तुम हो तुम हो तुम हो

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