Monday, June 13, 2011

मेरे सपने

पंखों में हैं रंग जितने
सागर में हैं सीप जितने
जीवन के हैं कर्ण जितने
मेरे भी हैं सपने उतने

आसमान में तारे जितने
फूलों पे हैं भवरें जितने
खिलते हुए चेहरे हैं जितने
मेरे भी हैं सपने उतने

राखी के हैं धागे जितने
ह्रदय हवन में शोले जितने
कोयल कंठ में स्वर हैं जितने
मेरे भी सपने उतने

इन सपनों के पर जब लगते
बनके पंची जब ये उड़ते
पीछा कटे हम नहीं थकते
मेरे भी हैं सपने उतने

2 comments:

  1. निःशब्द....और क्या कहूँ....परिचय बहुत बढ़िया लगा...ये जो पहलू आजतक आपका छुपा हुआ था आज पता चला...लिखती रहिये...शुभकामनाएँ!!!!!

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