Monday, June 20, 2011

यात्रा घर से ऑफिस की

अधखुली आँखों से नींद से जगना
सूर्योदय से पहले पेट पूजा का इंतज़ाम करना
कभी ब्रेड, कभी अंडे, बहुत हुआ तो पराठे
टिफिन भरने का इंतज़ाम करना

थोड़ी योगा करके कमार कसना
फिर ऑफिस की ओर प्रस्थान के लिए तैयार होना
इसी बीच में बंगाली बाई से हिंदी में समझना समझाना
और बस बाय बाय कहते हुए घर से निकल पड़ना

अब शुरु करते हैं बस की गाथा
जो ड्राईवर रोकने पर रुके नहीं, उसे कोसना
फिर खुद को तसल्ली देते हुए बस स्टॉप
और बस के इंतज़ार में टाइम पास करना
टाइम पास के लिए.......
कभी आते जाते लोगों के बारे में सोचना
तो कभी लहराते हुए मस्त पेड़ पौधों को ताकना
और फिर पहली नॉन-ऐसी आती बस में चड़ना
कम भीड़ हुई तो बैठने की और ज्यादा भीड़ में खड़े रहने की जगह ढूंढना



अपने स्टॉप को देख बस से उतरने के लिए भी तैयारी करना
आगे खड़े मोटे पटलों के बीच से सिकुड़ के निकलना
जो कभी लैपटॉप बैग साथ में तब तो बस गिरो न ऐसे संभालना
और नीचे उतर कर सांस भरना




अरे अभी तो यह पहली बस यात्रा का वर्णन था......

अब दूसरी बस होगी तो ऐसी पर उसे अगर है पकड़ना
आती दिखे तो चलना और जाती दिखे तो भागना
इतना ही नहीं, बस जाएगी किधर से, इसे भी बूझना
और अगर यह छूट गयी तो दूसरी का इंतज़ार करना

चलो पहली या दूसरी बारी में बस में पीछे बैठ जाना
कंडक्टर को पास दिखाकर आगे प्रस्थान करना
अब यात्रा है लम्बी, तो टाइम पास करने के बारे में सोचना
अब नींद नहीं आई तो, या तो किसी से बतियाना, गाने सुनना या फिर रातों को निहारना

अगर आँख लग जाए तो सोते रह जाने के दर से, नींद में आँख खोल कर देखना
स्टॉप आने के पहले ही बस के दरवाजे पे खड़े हो जाना
क्योंकि यहाँ उतरना मतलब बस में चढ़ने वालों से जंग करना
फिर नीचे उतारकर सांस भरना

अरे अभी तो तीसरी बस यात्रा का वर्णन बाकी है........

फिर नींद में भागना और बस पकड़ना
फ्री के झूलों के मज़े लूटना
रुमाल से बस और ट्रक के धुंए नाक में घुसने से बचाना
और स्टॉप आने पर ऑफिस तक चल कर जाना

ऑफिस में काम करने के बाद, वापसी की यात्रा....

यही तीन बस, धक्के मुक्की, सोते जागते और कुछ खाते
घर पहुचने की हल चल के होते
लड़कते फुदकते घर पहुँच जाते
शाम की चाय में बिस्कुट दुबोके खाते











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