Thursday, June 16, 2011

मेरा परिचय

परिचय क्या दूं मै अपना
पहचान बनाना बाक़ी है
चारू चंद्रिमा की चम् चम् है
तारे चुनना बाकी है

कलि बनी है तनी तनी है
मुखलित होना बाकी है
इसके अन्दर की सुगंध को
सुरभित होना बाकी है

हवा चली है, रेत उड़ी है
राह ढूंढना बाकी है
केतु कर्म का कर में लेकर
आगे बदना बाकी है

काव्या की कविता गंगा की
धरा बहना बाकी है
काव्या की कविता बूंदों की
वर्षा होनी बाक़ी है

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