माँ को प्रणाम
हर जगह शब्दों से बुन रहा जंजाल है
किसी के अपने शब्द उसकी जीत का हाल हैं
कोई सादे शब्द बोलकर विश्वास पाता है
कोई शब्दों से खेल वाह वाह पाता है
पर माँ वो है, जिसका हर शब्द ममता का भाव है
उसकी डांट में परवाह और दुआ में मजधार की नाव है
खुशियां फैलाती वो गम को छुपाती है
खुद को हमेशा मजबूत दिखाती है
कितनी बार जीत कर हारी है माँ
एक छोटी सी हँसी पर बलिहारी है माँ
ज़रुरत उसे भी है कोई उसकी परवाह करे
कभी सहलाये और कभी आगाह करे
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