अपनी ये दुविधा कैसे मैं बोलूं
आँख मिचोली किसके संग खेलू
आँचल में अपने किसको मैं ले लूँ
संग संग जिसके हवा जैसे डोलूं
ममता की लोरी पलने की डोरी
गाऊँ मैं कैसे कोई सुनता ना मोरी
छोटी सी पूरी माखन कटोरी
खिलाऊँ किसे मैं मलाई गिलोरी
नन्ही सी आँखें तुतली सी बातें
सुलाऊँ किसे मैं जग जग कर रातें
कोमल से कर जो ताली बजाते
पल वो ढूँढू जो हमको सताते
किसको डांटू पागल कहकर
आंसू पोंछुं रो कर रुला कर
नैन कहाँ जिन्हें सपने देकर
अपना मानू जिनको पाकर
गोद है सूनी आँगन सूना
सूना पड़ा घर का हर कोना
ना कुछ पाना ना कुछ खोना
ना कोई मांगे कोई खिलौना
कोई नहीं जो आवाज़ लगाये
पल्लू खींचे मुझको बुलाये
जिद पे अपनी जो अड़ जाये
माने न मोरी और मुझको सताए
मेरा अपना जिसपे वारी जाऊं
बच्चा जिसकी माँ कहलाऊँ
दर्द है मेरा कैसे बताऊँ
कैसे बोलूं किसको सुनाऊँ
Different lines have different meanings, all depends on your intrepretation and only for those who can really feel them..........
Friday, May 22, 2009
Dard ek maa ka
अपनी ये दुविधा कैसे मैं बोलूं
आँख मिचोली किसके संग खेलू
आँचल में अपने किसको मैं ले लूँ
संग संग जिसके हवा जैसे डोलूँ
आँख मिचोली किसके संग खेलू
आँचल में अपने किसको मैं ले लूँ
संग संग जिसके हवा जैसे डोलूँ
पलने की डोरी ममता की लोरी
गाऊँ मैं कैसे कोई सुनता ना मोरी
छोटी सी पूरी माखन कटोरी
खिलाऊँ किसे मैं मलाई गिलोरी
नन्ही सी आँखें तुतली सी बातें
सुलाऊँ किसे मैं जग जग कर रातें
कोमल से कर जो ताली बजाते
पल वो ढूँढू जो हमको सताते
किसको डांटू पागल कहकर
आंसू पोंछुं रो कर रुला कर
नैन कहाँ जिन्हें सपने देकर
अपना मानू जिनको पाकर
गोद है सूनी आँगन सूना
सूना पड़ा घर का हर कोना
ना कुछ पाना ना कुछ खोना
ना कोई मांगे कोई खिलौना
कोई नहीं जो आवाज़ लगाये
पल्लू खींचे मुझको बुलाये
जिद पे अपनी जो अड़ जाये
माने न मेरी और मुझको सताए
मेरा अपना जिसपे वारी जाऊं
बच्चा जिसकी माँ कहलाऊँ
दर्द है मेरा कैसे बताऊँ
कैसे बोलूं किसको सुनाऊँ
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