अपनी ये दुविधा कैसे मैं बोलूं
आँख मिचोली किसके संग खेलू
आँचल में अपने किसको मैं ले लूँ
संग संग जिसके हवा जैसे डोलूँ
आँख मिचोली किसके संग खेलू
आँचल में अपने किसको मैं ले लूँ
संग संग जिसके हवा जैसे डोलूँ
पलने की डोरी ममता की लोरी
गाऊँ मैं कैसे कोई सुनता ना मोरी
छोटी सी पूरी माखन कटोरी
खिलाऊँ किसे मैं मलाई गिलोरी
नन्ही सी आँखें तुतली सी बातें
सुलाऊँ किसे मैं जग जग कर रातें
कोमल से कर जो ताली बजाते
पल वो ढूँढू जो हमको सताते
किसको डांटू पागल कहकर
आंसू पोंछुं रो कर रुला कर
नैन कहाँ जिन्हें सपने देकर
अपना मानू जिनको पाकर
गोद है सूनी आँगन सूना
सूना पड़ा घर का हर कोना
ना कुछ पाना ना कुछ खोना
ना कोई मांगे कोई खिलौना
कोई नहीं जो आवाज़ लगाये
पल्लू खींचे मुझको बुलाये
जिद पे अपनी जो अड़ जाये
माने न मेरी और मुझको सताए
मेरा अपना जिसपे वारी जाऊं
बच्चा जिसकी माँ कहलाऊँ
दर्द है मेरा कैसे बताऊँ
कैसे बोलूं किसको सुनाऊँ
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