पंखों में हैं रंग जितने
सागर में हैं सीप जितने
जीवन के हैं कर्ण जितने
मेरे भी हैं सपने उतने
आसमान में तारे जितने
फूलों पे हैं भवरें जितने
खिलते हुए चेहरे हैं जितने
मेरे भी हैं सपने उतने
राखी के हैं धागे जितने
ह्रदय हवन में शोले जितने
कोयल कंठ में स्वर हैं जितने
मेरे भी सपने उतने
इन सपनों के पर जब लगते
बनके पंची जब ये उड़ते
पीछा कटे हम नहीं थकते
मेरे भी हैं सपने उतने
simply wonderful!!!
ReplyDeleteनिःशब्द....और क्या कहूँ....परिचय बहुत बढ़िया लगा...ये जो पहलू आजतक आपका छुपा हुआ था आज पता चला...लिखती रहिये...शुभकामनाएँ!!!!!
ReplyDelete