Friday, August 31, 2018

uff ye traffic

उफ़ ये  ट्रैफिक

दिन शुरू होते जब आपका सामना यातायात से होता है
गाड़ियों में बैठे लोग सोते लुढ़के नज़र आते हैं
सिलसिला गालियों का शुरू होता है
जब छोटे वाहन अचानक से कट मार गाड़ी के सामने आ जाते हैं

कोई गाड़ी इधर से तो कोई गाडी विभक्त के ऊपर चढ़ाता है
हर कोई पहले अपने साहिल पहुंचना चाहता है
५मील का रास्ता बढ़कर २०मील हो जाता है
हर गाडी में हताश चेहरा नज़र आता है

यातायात के कारण केवल गाड़ियों का बढ़ना या अचानक से खराब होना नहीं है
कभी सडकों की अनियोजित मरम्मत शुरू कर देना है
कभी बिना किसी कारण आपको एक स्थान पे रोका जाना है
और कभी काले घने बादलों का जम के बरसना है

यहां कारण समाप्त नहीं होते हैं
कभी सालों के लिए मेट्रो रेल का काम शुरू हो जाता है
कभी कोई आम आदमी यातायात अफसर बन जाता है
और कभी तो अचानक से रास्ता ही मोड़ दिया जाता है

यातायात के आग़ोश में जब घंटों बिताते हैं
सर के बाल बस ऐसे सफ़ेद होते नज़र आते हैं
चैन की साँस भरना चाहते हैं
पर लगता है सड़कों पे सिर्फ गाडी खिसकाते हैं

कभी पुरानी नगमें तो कभी नए गीत बजाते हैं
तो कभी तानसेन को बुलाते हैं
जो यातायात राग से सड़कों से जाम हटा दे
हमें जल्दी अपने साहिल पहुँचादे

रुके रुके गाड़ी चलाते कभी चने चबाते हैं
कार पूलिंग दोस्त बन जाएँ तो बचपन के किस्से सुनाते हैं
जब २०-२५ मिनट एक इंच भी नहीं पाते हैं
तब फिर यातायात का दुखड़ा बक-बकाते हैं

साहसी ख्याल  दिमाग की कुंडी खट-खटाते हैं
कभी लम्बे भररतोलन यन्त्र से खुद को उठवाकर पहुँचवाना है
कभी हेलीकॉप्टर में कभी रोप पे स्लाइड करके जाना है
कभी तो पंछी बन जाने का ही सपना दिखाई दे जाता है

कभी राम का कभी कृष्ण का जाप करते हैं
घर से टेलीफोन काल आती है
"यातायात में फँसे हैं" यही कह पाते हैं
रोज़ाना रास्ते का हाल घर वालों को बताते हैं